अब रहा नहीं जाता
एक तरफ़
कोई ध्रुव का तारा बन कर मार्ग दिखा रहा है मुझे,
कोई अंदर प्रवेश कर आत्मबल दे रहा है मुझे,
कोई दूर के समुन्द्र की आवाज़ सुना रहा है मुझे,
कोई चेतना प्रगट कर हवा दे रहा है मुझे,
कोई अपात्र में से पात्र बना रहा है मुझे,
दूसरी और ....दूर दूर से ....
मनमोहक किनारे लुभा रहे है मुझे,
पक्षिओं की कलरव बुला रही है मुझे,
और रौशनी की जममगाहट आंख मिचका रही है मुझे
लेकिन ....
प्रेयसी के मिलन में पाग़ल बन, पहले धारा, फिर नदी और अब झरना बन दौड़ रहा हूँ मैं,
काँप जाए ऐसा गहरा और विशाल समुन्द्र को आलिंगन देने तड़प रहा हूँ मैं ,
क्या होगा? कब होगा? कैसे होगा? इसकी परवा नहीं।
अस्तित्व विलय हो जायेगा? इसकी परवा नहीं।
अब रहा नहीं जाता है, गुरुमहाराज ,
नदी से समुन्द्र बना दो मुझे।
एक तरफ़
कोई ध्रुव का तारा बन कर मार्ग दिखा रहा है मुझे,
कोई अंदर प्रवेश कर आत्मबल दे रहा है मुझे,
कोई दूर के समुन्द्र की आवाज़ सुना रहा है मुझे,
कोई चेतना प्रगट कर हवा दे रहा है मुझे,
कोई अपात्र में से पात्र बना रहा है मुझे,
दूसरी और ....दूर दूर से ....
मनमोहक किनारे लुभा रहे है मुझे,
पक्षिओं की कलरव बुला रही है मुझे,
और रौशनी की जममगाहट आंख मिचका रही है मुझे
लेकिन ....
प्रेयसी के मिलन में पाग़ल बन, पहले धारा, फिर नदी और अब झरना बन दौड़ रहा हूँ मैं,
काँप जाए ऐसा गहरा और विशाल समुन्द्र को आलिंगन देने तड़प रहा हूँ मैं ,
क्या होगा? कब होगा? कैसे होगा? इसकी परवा नहीं।
अस्तित्व विलय हो जायेगा? इसकी परवा नहीं।
अब रहा नहीं जाता है, गुरुमहाराज ,
नदी से समुन्द्र बना दो मुझे।
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